सतसंग वचन सुनने से ही होगी कर्मों की गंदगी साफ – बाबा उमाकान्त महाराज

सतसंग वचन सुनने से ही होगी कर्मों की गंदगी साफ – बाबा उमाकान्त महाराज
सतसंग वचन याद आने से ही लंकिनी की जान बच गई
उज्जैन। परम सन्त बाबा उमाकान्त महाराज ने कहा कि सतसंग सुनने से ही मैलाई जाती है। कर्मों की जो मैलाई है, जान में अनजान में जो कर्म आपके बन गए हैं, वो कैसे साफ होगी? सतसंग वचन सुनने से। सतसंग वचन सुनने से देखो बहुत लोगों में बदलाव आ गया। सतसंग सुनकर के और याद कर लिया (सतसंग वचनों को), तो देखो लंकिनी की जान बच गई थी। तो सतसंग से बहुत फायदा होता है। सतसंग सुनने की पहले जब लोग आदत बनाए हुए थे, 15 दिन में, महीने में एक बार आते जाते रहते थे सुनने के लिए, तब हर चीज की बराबर जानकारी रहती थी। इसलिए सतसंग बराबर सुनते रहना चाहिए।
सतसंग का क्या फल मिलता है ? (एक राजा और महात्मा जी का दृष्टांत)
एक राजा ने महात्मा से सवाल किया, कहा “सतसंग का क्या फल मिलता है?”, महात्मा जी बोले “तुम सुनना चाहते हो या देखना चाहते हो?”, बोला “देखना चाहते हूं”। महात्मा जी ने कहा “ठीक है, चले जाओ उधर, नदी के किनारे एक टीला है, एक पेड़ है, उसी पेड़ के ऊपर चढ़ करके बैठ जाना, तो तुमको इस सवाल का जवाब मिल जाएगा”। राजा चला गया और बैठ गया, और काफी देर तक बैठा रहा। फिर सोचा ‘कुछ नहीं दिखाई पड़ रहा है, आने का क्या मतलब निकला?’ और जब नीचे उतरने लगा, तब देखा कि एक आदमी झाड़ू ले करके आ रहा है, आया और झाड़ू लगा करके चला गया। फिर दूसरा आदमी गलीचा (कालीन) ले करके आया, और जमीन पर बिछा करके चला गया।
उसके बाद कुछ दिव्य आत्माएं ऊपर से उतरी और आकर बैठ गई। फिर एक सिंहासन पर एक दिव्य पुरुष आये, और वहां बैठ करके सतसंग सुनाया, उसके बाद वो सिंहासन ऊपर चला गया और वो सब लोग भी वहां से चले गए। राजा वहीं बैठ करके सब देखता रहा और जब देखा कि अब और कुछ नहीं दिखाई पड़ रहा है, तो धीरे-धीरे नीचे उतरा। जब उसने जमीन पर पैर रखा, तो देखा एक आदमी जो काला, कुरुटा, कुरूपी, जिसके अंग टेढ़े, जिसको देखते ही भय लगे, आता हुआ दिखाई पड़ा।
राजा वहीं खड़े हो करके देखने लगा कि देखें ये कौन है, ये क्या करता है। तो वो आदमी आया और जमीन पर लौटने लगा। अब लौटने के बाद, उसका शरीर बिल्कुल निर्मल, स्वच्छ हो गया। तो राजा ने पूछा “आप कौन हो?”, बोला “मैं एक पापी हूं, दिनभर इतना पाप करता हूं कि मेरा शरीर काला पड़ जाता है।
मैं जानता हूं ये पाप है, लेकिन उसमें इतना लिप्त हो गया हूं कि मेरा मन पाप किए बगैर मानता ही नहीं है। तो उसका असर आता है और शरीर काला, कुरूपी हो जाता है। लेकिन इस स्थान पर सतसंग होता है, और सतसंग वाली जगह पर जब मैं लेट लेता हूं, तो मैं निर्मल, साफ हो जाता हूं”। तो जिस जगह पर सतसंग होता है और वो स्थान अगर गंदा ना हो (वहां पाप ना हो, हिंसा, हत्या ना हो), तो पवित्र रहता है।