हरियाणा

महर्षि व्यास ने मंदिर बनवाए और मूर्तियों की आंखे बड़ी रखी, उनमें दृष्टि जमाकर लोग साधना करते थे – बाबा उमाकान्त महाराज

महर्षि व्यास ने मंदिर बनवाए और मूर्तियों की आंखे बड़ी रखी, उनमें दृष्टि जमाकर लोग साधना करते थे – बाबा उमाकान्त महाराज

दृष्टि की साधना बहुत पहले से चली आ रही है लेकिन जिसको जिस तरह के गुरु मिले हैं, उसी तरह से ध्यान लगाने का उन्होंने बताया है

बवाल, रेवाड़ी, हरियाणा। परम सन्त बाबा उमाकान्त महाराज ने दृष्टि की साधना के बारे में बताते हुए कहा कि देखो यह ध्यान लगाने की दृष्टि की साधना, जो आपको बताई गई है; यह कोई आज की नई नहीं है, बहुत पहले से चली आ रही है, लेकिन जिसको जिस तरह के गुरु मिले हैं, उसी तरह से ध्यान लगाने का उन्होंने बताया है।जिन्होंने ध्यान प्रक्रिया को बताया और ध्यान लगाया, सब का रास्ता परमार्थी ही रहा। एक व्यास महर्षि हुए थे, उन्होंने देखा कि लोगों का ध्यान लगाने में मन नहीं लग रहा है, तब व्यास जी ने जगह-जगह पर मंदिर बनवा दिए थे और मंदिर की मूर्तियों की जो आँखे थी, वह बड़ी थी, उससे दृष्टि की साधना लोग करते थे।

पहले ज्यादातर मंदिर लोग एकांत में बनवाते थे

जब लोगों ने ध्यान लगाना बंद कर दिया तब व्यास जी ने मंदिर बनवाए और कहा कि तुम लोग ध्यान नहीं लगाते हो, तो ध्यान लगाओ, आओ एक जगह बैठो। तो ज्यादातर मंदिर लोग कहाँ बनाते थे? गाँव के बाहर जहाँ ज्यादा शोर-शराबा ना हो, जहाँ गाँव के आदमी थोड़ा पैदल चल कर के पहुँच जाएं। लेकिन जब आबादी बढ़ गयी तो मंदिर के आगे भी लोगों ने घर बना लिए। तो उस समय पर मंदिरों में लोग जाते थे, आज भी नियम है लोगों का, जाते हैं लेकिन असला काम लोगों ने छोड़ दिया, कौन सा काम? मंदिरों में जाकर जो उन मूर्तियों की आँखों में ध्यान लगा कर देखना रहता था जिससे उनकी दृष्टि जम जाती थी। दृष्टि की साधना जब करते थे तो वह ताकत (जीवात्मा की ताकत) एक जगह पहुँच कर के अंदर का किवाड (तीसरी आँख) खोल देती थी।

उल्टा नाम जपत जग जाना, बाल्मीकि भये ब्रह्म समाना

मन को देखो; जितना किसी सुन्दर चीज को देखने में लग जाता है, जैसे कोई सुन्दर झांकी हो, कोई सुन्दर रामलीला या रासलीला हो रही हो, तो जितना मन इधर लग जाता है उतना अंदर में नहीं लगता है। तो मन की यह जो गति हो गयी यह बाहर मुखी हो गयी। बाल्मीकि जी ने मन को बाहर की तरफ से अंदर की तरफ लगाया, बाहर मुखी से अंतर मुखी साधना किया; जीवात्मा दोनों आँखों के बीच में बैठी हुई है और इसकी पूरी शक्ति जो पूरे शरीर में अंगूठे तक फैली हुई है इसको उन्होंने इधर से खींचा; इधर से उलट कर के ऊपर किया तब उस ब्रह्म की शक्ति उनके अंदर आ गयी थी तो कहा गया है “उल्टा नाम जपत जग जाना, बाल्मीकि भए ब्रह्म समाना”।

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