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महात्मा यह चाहते हैं कि महाप्रलय (कयामत) ना देखना पड़े, उससे पहले ही आप होशियार हो जाओ – बाबा उमाकान्त महाराज

महात्मा यह चाहते हैं कि महाप्रलय (कयामत) ना देखना पड़े, उससे पहले ही आप होशियार हो जाओ – बाबा उमाकान्त महाराज

महाप्रलय में पांचों तत्व खत्म हो जाते हैं और ऊपर के कई लोक चटाई की तरह सिमट जाते हैं

अहमदाबाद। गुजरात बाबा उमाकान्त महाराज ने 2 अगस्त 2025 के सतसंग में महाप्रलय के बारे में बताते हुए कहा कि धरती पर जब पाप बहुत बढ़ जाता है तब यह धरती हिलती है, भूकंप आते हैं जो अब आने लगे हैं; संकेत मिलता है। पाप बढ़ने पर आंधी-तूफान, बवंडर (चक्रवात) आते हैं। आगजनी होने लगती है, आग अपने आप जलने लगती है, जैसे इस समय पर पता नहीं चलता है कि आग कहाँ से लगी है और फैक्ट्री की फैक्ट्री राख हो जाती है, पूरा मार्केट, पूरा गाँव जल कर राख हो जाता है। पाप बढ़ने पर अतिवृष्टि होती है; मतलब पानी बहुत बरसता है, गाँव के गाँव, शहर के शहर बह जाते हैं।

जल देवता जब नाराज हो जाते हैं तब तूफान ला करके और समुद्र के किनारे 100-100, 50-50 मंजिल के बने मकान धराशाही हो जाते हैं। पता भी नहीं चलता है कि कहाँ चला गया और समुद्र में समा जाता है। पाप जब और भी ज्यादा बढ़ने लगता है तब बारिश बंद हो जाती है, तो अन्न पैदा नहीं होता है। फिर आदमी क्या खाता है? पेड़ की पत्तियां। लेकिन चूंकि पानी नहीं बरसता है तो पेड़ भी सूख जाते हैं, तो फिर आदमी जानवरों को मार-मार करके खाने लगता है और जब जानवर भी नहीं रह जाते हैं तब जान बचाने के लिए आदमी, आदमी को ही खाने लगता है। लेकिन ज्यादा दिन तक यह चल नहीं पाता है क्योंकि पानी की भी जरूरत होती है।

कुदरत पाप की इतनी बड़ी सजा देती है

महाप्रलय में आदमी ज्यादा दिनों तक जिंदा नहीं रह पाता है, गिर जाता है, चल-फिर नहीं पाता है और एक-दूसरे की तरफ देखते रहते हैं कि हमारी कोई मदद कर दे, तड़पते रहते हैं और तड़प-तड़प कर के प्राण निकाल देते हैं। तो आदमी खत्म हो जाते हैं, जंगलों में आग लगती है और जानवर खत्म हो जाते हैं, पेड़-पौधे सब खत्म हो जाते हैं। फिर चट्टानें, बड़े-बड़े पहाड़ टूट-टूट कर गिरते हैं क्योंकि उसमें से पृथ्वी तत्व खत्म हो जाता है।

पृथ्वी तत्व खत्म होने से धरती राख की तरह हो जाती है और पानी धरती को अपने में सोख लेता है। उसके बाद तेज अग्नि पानी को सोख लेती है, तो जल के जीव भी तड़प-तड़प कर के खत्म हो जाते हैं। फिर अग्नि को हवा सोख लेती है और आकाश तत्व हवा का शोषण कर लेता है। बस ऐसे ही यह पांचों तत्व खत्म हो जाते हैं। चारों तरफ अंधेरा हो जाता है क्योंकि चांद, सितारे, सूरज यह सब तत्वों पर ही निर्भर है तो यह सब सिमट जाते हैं।

उसके बाद स्वर्ग लोक, बैकुंठ लोक, आद्या महाशक्ति का लोक, ईश्वर का लोक चटाई की तरह सिमट जाते हैं और खिंच कर के दसवां द्वार तक पहुंच जाते हैं। काफी समय बाद सतपुरुष की जब पुनः मौज होती है तब फिर वे धीरे-धीरे विस्तार करवाते हैं। तो कुदरत पापों की इतनी बड़ी सजा देती है।

इसीलिए आपको याद करते रहना चाहिए कि कहीं हमारे शरीर से, हमारे मन से, हमारे धन से पाप ना बन जाए। तो यह जो महाप्रलय (कयामत) है, यह ना देखना पड़े, यह जीवन में ना आवे, उससे पहले आप थोड़ा सा होशियार हो जाओ और अपना असला काम बना लो, यही महात्मा (वक्त गुरु) चाहते हैं।

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