पशु, पक्षियों के लिए खाने – पीने की व्यवस्था कर दो, इससे गलत जगह लगे धन से बने कर्म कटते हैं – बाबा उमाकान्त महाराज

पशु, पक्षियों के लिए खाने – पीने की व्यवस्था कर दो, इससे गलत जगह लगे धन से बने कर्म कटते हैं – बाबा उमाकान्त महाराज
कर्तव्य और परमार्थ में अंतर होता है
बलरामपुर (उ. प्र.)। बाबा उमाकान्त महाराज ने कहा कि सन्तों ने जीवों के कर्मों को काटने के लिए रोज की सेवा का उपाय बताया है कि श्रमदान सेवा की जाए। जैसे आश्रमों पर श्रमदान सेवा अभी भी होती है, वह सेवा है। लेकिन आश्रमों पर रोज सेवा करने कोई नहीं जा सकता, तो घर में भी सेवा है। जैसे बाल-बच्चों की देख-रेख कर लो, दरवाजे पर कोई भूखा आ जाए उसको खिला दो, प्यासा आ जाए तो पानी पिला दो। कोई दुखी है, तो हो सके तो उसका दुख दूर कर दो, वह भी एक सेवा है। लेकिन बाल-बच्चों की देख-रेख, उनकी सेवा यह परमार्थ में नहीं जुड़ती है, यह तो आपका कर्तव्य है। अपने बच्चों की शादी कराना, उनको पढ़ाना-लिखाना, घर में कोई बीमार हो गया हो तो उनका इलाज करना यह आपका कर्तव्य बनता है। लेकिन दूसरे के लिए जो कर दिया जाता है वह परमार्थ में जुड़ जाता है।
धन से बने गलत कर्मों को कैसे काट जाता है ?
कर्म रोज इकट्ठा होते हैं और रोज कर्मों को काटा जाता है। शरीर से कर्म बन जाते हैं, मन से कर्म बन जाते हैं, धन से कर्म बन जाते हैं। धन अगर कहीं गलत जगह पर लग गया; धन से कोई गलत कर्म बन गया तो गाय को खिला दो, पक्षियों को खिला दो, किसी भी जीव को खिला दो, आदमी को खिला दो, बहुत गर्मी में पक्षियों जानवरों के लिए पानी की व्यवस्था कर दो, गौशाला बनवा दो, तो धन गलत जगह पर लगने से जो कर्म बन गए वो कर्म कट जाएंगे।
सेवा भाव, सहयोग भाव होना चाहिए
सेवा भाव, सहयोग भाव होना चाहिए। अब सहयोग बहुत से लोग सोच नहीं पाते हैं कैसे करें? जैसे आप किसान हो, अब जहाँ गेहूं की कटाई नहीं हुई है; शुरू होगी, और कोई मान लो कमजोर है, तो उसके गेहूं की कटाई के लिए आप सोच लो कि चलो हम इसको कटाई करवा दे और चार – छः लोग मिलकर के उसके खेत की कटाई करा दिए तो सहयोग हो गया, सेवा हो गयी, परोपकार हो गया। अब जो जिसके लिए कुछ भी कर देता है वह अहसानमंद भी हो जाता है, जब जरूरत पड़ेगी तब वह आपकी मदद कर देगा।