धन, बल, प्रतिष्ठा को परछाई जैसा समझना चाहिए। जो इनको अपना मानेगा, वह फंस जाएगा – बाबा उमाकान्त महाराज

धन, बल, प्रतिष्ठा को परछाई जैसा समझना चाहिए। जो इनको अपना मानेगा, वह फंस जाएगा – बाबा उमाकान्त महाराज
परमार्थ, संगत, सन्तमत का रास्ता छोटा बन कर के रहने का रास्ता है
जोधपुर, राजस्थान। बाबा उमाकान्त महाराज ने 3 सितंबर 2025 के सतसंग में कहा कि पर पैसा और पर नारी से दूरी ही रखनी चाहिए। इन्होंने आज तक लोगों को परमार्थ के रास्ते से अलग किया है। पद भी बहुत खतरनाक होता है, उसका भी बड़ा अहंकार आता है। और ऐसे मनमुखी लोग जो पद पा कर खुश होते हैं, जब उस पद से हटाए जाते हैं या हट जाते हैं तब वही जान के दुश्मन बन जाते हैं और फिर वह परमार्थ के रास्ते से बहुत दूर हो जाते हैं। वे तो दुनियादारों से भी खराब हो जाते हैं और नरक जाने का टिकट ले लेते हैं। तो इसीलिए उससे दूर रहना चाहिए।
अब आप कुछ लोग जो संगत के काम में पदों पर रहते हो, कहोगे कि फिर तो हमें पद छोड़ देना चाहिए। नहीं, छोड़ नहीं देना चाहिए। लेकिन आपको अपनी निरख-परख करते रहना चाहिए कि हमें कहीं इस बात का अहंकार तो नहीं आ रहा है? क्योंकि इससे करा कराया सब चला जाता है। गोस्वामी जी महाराज ने कहा
“जो समझे प्रभुता परछाईं, प्रभुता पाय ताय मद नाहीं”
प्रभुता किससे आती है? प्रतिष्ठा से, धन से, पद से, शरीर के बल से। तो जो प्रभुता को परछाई समझे, उसका कुछ नहीं बिगड़ता है लेकिन जो उससे प्रेम कर लेगा, उसको अपना मानने लग जाएगा, वह फंस जाएगा। इसीलिए समझो कि यह कुछ नहीं है। काम वही करो लेकिन समझो कि यह कुछ नहीं है, छोटे बन जाओ।
परमार्थ, संगत, सन्तमत का रास्ता छोटा बन कर के रहने का है
यह वह रास्ता है जहाँ सबको सहो, सबकी सुनो, सबका ध्यान रखो, सबके हिसाब से चलो, सबकी उचित राय ले कर के फिर विचार कर के तब आगे बढ़ो। यह देखो कि किसके अंदर क्या योग्यता है, कौन क्या जानकारी दे रहा है, हमें अच्छी, जनहित की जानकारी दे रहा है, हमारे हित की जानकारी दे रहा है या अपने हित की जानकारी दे रहा है? और अपने से ज्यादा अनुभव वाला है तो उसकी बात को मान लेना चाहिए।