अन्य ख़बरें

भौतिक मेले में केवल मन को सुख मिलता है – परम सन्त बाबा उमाकान्त महाराज

सतसंग में आने से भटके को रास्ता (प्रभु प्राप्ति का मार्ग) मिल जाता है...

भौतिक मेले में केवल मन को सुख मिलता है – परम सन्त बाबा उमाकान्त महाराज।

सतसंग में आने से भटके को रास्ता (प्रभु प्राप्ति का मार्ग) मिल जाता है।

उज्जैन (म. प्र.)। सन्त बाबा उमाकान्त महाराज ने बताया कि मेल-मिलाप को मेला कहते हैं। एक तो भौतिक मेला होता है, वहां मेले में नाच-गाना होता है। दुनिया की चीजों को बेचते-खरीदते हैं, खेल-खिलौने खरीदते-बेचते हैं, खाते-खिलाते हैं। वह भौतिक मेला है, वहां मन को सुख मिलता है। जब एक दूसरे से मिलते हैं तो मन प्रसन्न हो जाता है। कोई रिश्तेदार हो, हित-मित्र हो, परिवार का आदमी हो जिससे रोज मेल-मिलाप नहीं होता है और जब कभी मेल-मिलाप होता है तो मन प्रसन्न हो जाता है कि हमारे रिश्तेदार मिल गए। खाने के लिए मन को पसंद आने वाली मिठाई मिल गई। वहां पर खेल-खिलौना मिल गया, जरूरत की जरूरी चीजें मिल गई तब मन प्रसन्न हो जाता है। वह भौतिक मेला कहलाता है। और दूसरा होता है आध्यात्मिक मेला।

आध्यात्मिक मेला किसे कहते हैं ?

पूज्य महाराज ने, नव वर्ष के अवसर पर बाबा जयगुरुदेव आश्रम- उज्जैन में आयोजित 3 दिवसीय सतसंग कार्यक्रम में आए हुए अपने अनुयायियों को बताया कि यह जो मेल-मिलाप हो रहा है, यह आध्यात्मिक मेला है। यह अन्य मेलों की तरह से नहीं है। इसमें जीवात्माएं एक दूसरे को देखती हैं और खुश होती हैं कि देखो हमारे भाई मिल गए। ये और हम एक दिन एक ही जगह पर थे लेकिन अब बिछुड़ गए हैं। अलग-अलग जगह पर इनका स्थान हो गया। कोई किसी शरीर में, किसी खानदान में, किसी जाति-मजहब में बंद कर दिया गया। तो ये होता है आध्यात्मिक मेला।

आध्यात्मिक मेला कौन लगाता है ?

सतसंग में बाबा ने आगे बताया कि आप सब अपने-अपने शरीर के लिए ही काम करने में लगे हुए थे लेकिन कोई ऐसा जानकार (सन्त सतगुरु) मिला जिसने आध्यात्मिक मेला लगा दिया। यह है सतसंग का कार्यक्रम। जैसे आदमी किसी न किसी बहाने लोगों को इकट्ठा करता है, तीज और त्यौहार को नदियों के किनारे मेला लगता है। जहां मंदिर बना रखा है, वहां पर मेला लगता है। ऐसे ही सन्त -महात्माओं का जीवों को बुलाने के लिए, जीवों को समझाने के लिए, भटके हुए को रास्ता दिखाने के लिए कोई न कोई बहाना होता है।

सतसंग में आने से भटके को रास्ता (प्रभु प्राप्ति का) मिल जाता है।

पूज्य महाराज जी ने कहा कि गुरु महाराज की दया हुई और गुरु महाराज आपको अपने नाम के स्थान पर – ‘बाबा जयगुरुदेव आश्रम उज्जैन’ पर खींच करके ले आए और हम आप एक दूसरे से मिल रहे हैं, गदगद हो रहे हैं, खुश हो रहे हैं। इस बात के लिए खुश हो रहे हैं कि हम जिस रास्ते पर चल रहे हैं, अब और लोग भी उसी रास्ते पर चलने लगेंगे। अभी तक तो भटकाव था। कोई किधर जा रहा था तो कोई किधर जा रहा था और रास्ता नहीं मिल रहा था। कहा गया –

    भटक-भटक सब भटका खाया।
    सतगुरु बिन कोई राह न पाया।।

अभी तक जो लोग भटक रहे थे, उनको अब राह मिल जाएगी, रास्ता मिल जाएगा जिससे अपनी मंजिल तक पहुंच जाएंगे। अपने असली घर, अपने असकी देश, अपने प्रभु के पास पहुंच जाएंगे इसलिए खुशी हो रही है।

Related Articles

Back to top button