छत्तीसगढ़

CG – गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर साहित्य एवं कला समाज जगदलपुर द्वारा काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया…

गणतंत्र दिवस पर काव्य गोष्ठी

पुण्य सलिला है यह धरती, आओ इसका मान करें
रत्नगर्भा है यह धरती, इसका अब सम्मान करें।

इन पंक्तियों से अंचल के वरिष्ठ कवि अवध किशोर शर्मा ने गणतंत्र दिवस का अभिनंदन किया।

जगदलपुर। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर साहित्य एवं कला समाज जगदलपुर द्वारा काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में शहर के कवियों के अलावा आसपास के कवि भी अपनी देशभक्ति से ओतप्रोत रचनाओं के साथ सम्मिलित हुये। कार्यक्रम की शुरूआत ममता मधु ने सरस्वती वंदन के मधुर पाठ से की।

शहर के युवा गजलकार कृष्णशरण पटेल ’कृष्णा’ ने सस्वर रचनापाठ किया।

हमारे तिरंगे का होता हरदम जग में मान रहे / सारी दुनिया से सर्वोच्च हमारा संविधान रहे।

इसके अलावा अपनी दूसरी गजल में कहा- क्या क्या बताएं क्या से क्या जहां में कर जाते हैं लोग / ऊपर चढ़ने की ख्वाहिश में हद से उतर जाते हैं लोग।

गीतकार व गजलकार विपिन बिहारी दाश ने आहवान गीत का पाठ किया। ’उठो देश के वीर सपूतों, देश का नवनिर्वाण करो, जन जन के जीवन में तुम, नई क्रांति नव प्राण भरो।

इसके अलावा ’पानी’ शब्द पर केन्द्रित गजल में अच्छा संदेश दिया।
जिनकी आंखों का मर गया पानी / उनके सर से गुजर गया पानी।
भूतपूर्व सैनिक और वर्तमान में शासकीय सेवारत सुरेन्द्र कुमार ने एक सैनिक के परिवार की जीवंत व्यथा पढ़कर सभा को अभिभूत कर दिया। इसके अलावा गणतंत्र पर केन्द्रित कविता यह पढ़ी।

कर्तव्य भूले जो, यह राष्ट्र का अपमान है
संविधान से ही तो भारत की पहचान है।

बस्तर से पधारे समर्पित कवि गोरेलाल विश्वकर्मा ने गणतंत्र दिवस और आजादी को जोड़ते हुये रचना पाठ किया।

गणतंत्र दिवस फिर आ पहुंचा, हमें मिली थी आजादी, दो सौ वर्ष गुलाम रखी थी, अंग्रेजी सत्ता बेगारबादी।

समाजसेविका शैल दुबे ने आजादी और आजादी के दावेदारों पर व्यंग्य कसा- मिली है जब से आजादी, भारत मां की नींद उड़ा दी, बहुत कठिन जीवन का सफर, बस कुछ लोगों की है चांदी।
युवा कवियत्रि शैफाली जैन ’सरगम’ ने संविधान केन्द्रित श्रेष्ठ रचना का पाठ किया।

मैंने तो समता सौंपी थी, तुमने फर्क व्यवस्था कर दी, मैंने न्याय व्यवस्था दी थी, तुमने नर्क व्यवस्था कर दी।
इसके अलावा आपने ’ऐ मेरे वतन के लोगों’ गीत सस्वर गाया।

ममता जैन ’मधु’ ने गुरूवर को अपना गीत समर्पित किया।
सच्चा दर्शन जाना….

रूप है पहचाना, तेरे दर्शन के बाद गुरूवर
गुरूवर, गुरूवर, हो..गुरूवर गुरूवर….

बहुभाषी कवि अनिल शुक्ल ने संस्कृत में गणतंत्र दिवस की बधाई व संदेश दिया। इसके अलावा यह रचना पढ़ी।

मैं व्यथित अंतःकरण हूं, मर रही संवेदनाओं को सहेजे घूमता हूं
बस कलम मेरा सहारा, मैं व्यथित अंतःकरण हूं।

हलबी के मंच कलाकार और कवि नरेन्द्र पाढ़ी ने पालतू कुत्ते की नजाकत नाज नखरे पर केन्द्रित हलबी हास्य कविता ’झापू कुकुर’ का पाठ किया। और ’सर पर कांटों का ताज पहने हो, और फूलों की बात करते हो’ हिन्दी कविता का पाठ किया।

बस्तर की दानवीर भामाशाह सुश्री अनिता राज ने इस अवसर पर अपने अनुभवों को साझा करते हुये अपनी सियाचीन यात्रा का विवरण दिया।

हजारों हाथों को चित्र बनाने की कला सिखाने वाले बंशीलाल विश्वकर्मा एवं अनिता जैन ने गणतंत्र दिवस पर शुभकामनाएं प्रेषित की।

कार्यक्रम का संचालन करते हुये सनत जैन सागर ने अपनी रचनाओं से गुदगुदाया तो रोमांचित किया। शहर के युवा अरिहंत जैन के संन्यास ग्रहण करने के अवसर पर तैयार की गयी पंक्तियां सुनायीं।
अंतरमन की वीणा के तार बजाते देखा है / छम छम छम छम कर्मों को नाच नचाते देखा है।

बंद आंखों से मन की फुलवारी में जाने क्या पाया / अकेले बैठकर जाने क्यों मुस्कुराते देखा है।

श्रोताओं रूप में सोनी गली सुभाष वार्ड के निवासियों ने आनंद लिया।

Related Articles

Back to top button