सन्त इस धरती पर केवल परमार्थ के लिए ही आते हैं- सन्त बाबा उमाकान्त महाराज
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सन्त इस धरती पर केवल परमार्थ के लिए ही आते हैं- सन्त बाबा उमाकान्त महाराज
जो आदि से अंत दिखाता है और अंत से आदि तक पहुंचता है, वही सन्त होता है
उज्जैन। परम सन्त बाबा उमाकान्त महाराज ने सतसंग के माध्यम से बताया कि सन्त कौन होते हैं और वे किस काम के लिए आते हैं। बाबा ने कहा कि दाढ़ी, बाल को या कपड़े को सन्त नहीं कहते हैं। जिसको आदि और अंत की जानकारी होती है और आदि व अंत का भेद बताता है। जो आदि से लेकर के अंत दिखाता है और अंत से ले करके आदि तक पहुंचता है, वही सन्त होता है। अब आप कहोगे कि ये कोई जमीन फाड़ कर के आते होंगे या आसमान तोड़ कर के आते होंगे तो ऐसा कुछ नहीं है। माँ के पेट में ही बनते हैं, पलते हैं और इसी धरती पर चलते हैं।
यहीं का अन्न का खाते हैं, यहीं का पानी पीते हैं लेकिन वे अपना काम पहले करते हैं। अपना काम का मतलब होता है अपने घर, अपने मालिक के पास पहुंचना। वो उस वक्त के जो सन्त होते हैं उनके पास पहुँच जाते हैं और उनसे इल्म लेते हैं, शिक्षा लेते हैं, नाम लेते हैं, कौनसा नाम? जिसके लिए कहा गया “कलयुग केवल नाम अधारा, सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा”। नाम की डोर को पकड़ते हैं और प्रभु तक पहुंचते हैं। फिर प्रभु का आदेश हो जाता है कि अब तुम इस काम को (नामदान देने का) करो, तो उस काम को वे करने लग जाते हैं।
वृक्ष ना कबहूं फल भखै, नदी न संचै नीर।
परमारथ के कारणे, संतन धरा शरीर।।
जिस देश में हम लोग रहते हैं ये है तो काल भगवान का देश, उन्होंने दुनिया संसार को बनाया है, लेकिन आदमी ने अलग-अलग देश बना लिया, अलग-अलग राज्य बना लिया। यह देखा जा रहा है कि भारत देश में ही सन्त महात्माओं एवं अवतारी शक्तियों का अवतार हुआ है। सन्त महात्मा यहाँ आते रहे हैं और विशेष रूप से कलयुग में, जिसके लिए कहा गया है “कलयुग सम नहीं आन युग, जब सन्त लिया अवतार”।
जब-जब वे आए, तब-तब उन्होंने जीवों को जगाने का समझाने का काम किया है। क्योंकि जैसे किसी का ऑपरेशन करना होता है तो ऑपरेशन करने से पहले उसको क्लोरोफॉर्म सुंघाते हैं और उसको सूंघ लेने के बाद मरीज बेहोश हो जाता है। ऐसे ही काल भगवान ने, इस तरह से क्लोरोफॉर्म का छिड़काव कर रखा है कि जगह-जगह पर बेहोशी आ रही है लोगों को। होश ही नहीं आ रहा है कि मौत भी आनी है, जबकि मौत सामने खड़ी है, पता नहीं कब आ जाए। तो सन्त जब-जब आए उन्होंने जीवों को जगाने का परमार्थी काम किया, क्योंकि इसमें उनका कोई स्वार्थ नहीं होता है, वे इसी काम के लिए आते हैं। तभी तो कहा गया ना कि
“वृक्ष ना कबहूं फल भखै, नदी न संचै नीर।
परमारथ के कारणे, संतन धरा शरीर।।”
जैसे पेड़ अपना फल खुद नहीं खाता है लोगों को खिलाता है, नदी अपना पानी स्वयं नहीं पीती है दूसरे को पिलाती है, खुद नदी नहाती नहीं है दूसरों को नहलाती है दूसरों की सफाई करती है। ऐसे ही सन्त होते हैं दूसरों के लिए आते हैं।
बीमारी व तकलीफों में आराम देने वाला नाम “जयगुरुदेव”
किसी भी बीमारी, दुःख, तकलीफ, मानसिक टेंशन में शाकाहारी, सदाचारी, नशामुक्त रहते हुए जयगुरुदेव जयगुरुदेव जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव की ध्वनि रोज सुबह-शाम बोलिए व परिवार वालों को बोलवाइए और फायदा देखिए।