छत्तीसगढ़

सतसंग को विश्वास और श्रद्धा के साथ सुनना चाहिए, उसमें जो बताया जाए, उसे करना चाहिए – बाबा उमाकान्त महाराज

सतसंग को विश्वास और श्रद्धा के साथ सुनना चाहिए, उसमें जो बताया जाए, उसे करना चाहिए – बाबा उमाकान्त महाराज

बताए अनुसार करने से दुनिया में किसी चीज की दिक्कत नहीं आएगी और समय पूरा होने पर प्रभु की गोद में बैठ जाओगे

जोधपुर, राजस्थान। बाबा उमाकान्त महाराज ने 2 सितंबर 2025 के सतसंग में कहा कि “बिना सतसंग कोई बूझ न पावे, भाग्य बिना सतसंग ना पावे” बूझने का मतलब होता है कि जानकारी नहीं कर पाता है। “भाग्य बिना सतसंग ना पावे” जब भाग्य जगता है तब सतसंग मिलता है। तो ये जो सतसंग है, जिसको कहा गया “सतसंग किसको कहत हैं, सोही जान लेय, सतलोक सतपुरुष का जहां कीर्तन होय” जहां उस प्रभु की महिमा बताई जाती है, उससे मिलने का रास्ता बताया जाता है, वह सतसंग होता है और वह भाग्य से मिलता है। अब, सतसंग सुनना चाहिए और सतसंग सुनने में भी विश्वास होना चाहिए। जब सतसंग सुना जाए तो विश्वास के साथ सुनना चाहिए कि भाई ये जो बात बता रहे हैं इससे हमारा फायदा होगा, अगर हम करेंगे तो हमको लाभ मिलेगा।

विश्वास और श्रद्धा के साथ सुनना चाहिए। उसका अधिकारी बन जाना चाहिए। अगर अधिकारी नहीं बनोगे तो सतसंग की महिमा को समझ नहीं पाओगे।

सतसंग में जो बताया जाए, वह करने से सुख और शांति मिलेगी, संकट दूर होंगे

कहा गया है “सतसंग की महिमा है अतिभारी, जो कोई जीव मिले अधिकारी” जीव अधिकारी का मतलब क्या होता है? एक कहावत है “भैंस के आगे बीन बजावे और भैंस खड़ी पगराय” उसके सामने बीन बजा दो, कुछ बाजा बजा दो, तो उसको मस्ती आएगी? वह नाचेगी, गाएगी? आदमी नाचने लगता है, बीन बजाने पर सांप नाचता हुआ चला आता है, क्योंकि वह उसकी कद्र करता है, उसको जानता है। किसी जानवर को आप अगर वेद, पुराण पढ़ कर सुनाने लग जाओ, उसको आध्यात्मिक बातें बताने लग जाओ तो आपका बेकार जाएगा कि नहीं जाएगा? इसीलिए वह बेकार जाता है। सुनना भी बेकार जाता है, कहना भी बेकार जाता है। तो विश्वास के साथ सतसंग सुनना चाहिए और जो बताया जाए, करना चाहिए, जिससे सुख-शांति मिले, दुनिया में जब तक रहो किसी चीज की दिक्कत ना हो; ना खाने की, ना पहनने की, और जो दुख है, संकट है ये दूर हो जाए और जब समय पूरा हो जाए तब प्रभु की गोद में जा कर के बैठ जाओ।

अगर ऐसे आए बस सुन कर के चले गए तो समझ लो कि फायदा तो होता है, लाभ तो होता है, संस्कार तो बनते हैं, लेकिन उसी तरह से होता है जैसे पत्थर को पानी में फेंक दिया जाए तो ऊपर से गिला रहेगा लेकिन अन्दर में सूखा ही रह जाएगा।

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