संतों का उद्देश्य जीवों को अपने असली घर और असली पिता तक पहुंचाना होता है…
संतों का उद्देश्य जीवों को अपने असली घर और असली पिता तक पहुंचाना होता है।
यह मनुष्य शरीर किराए का मकान है, एक न एक दिन खाली करना ही पड़ेगा
उज्जैन। सन्त बाबा उमाकान्त महाराज ने नववर्ष पर सतसंग के माध्यम से बताया कि सतगुरु वे होते हैं जो हड्डी और मांस के शरीर में तो रहते हैं, लेकिन उनमें उस परमात्मा की ताकत होती है। जिनको परमात्मा, प्रभु, अलख, अनामी, सतपुरुष कहा गया, वे मनुष्य शरीर में नहीं आ सकते हैं। परमात्मा अदृश्य हैं। ‘अदृश्य’ का मतलब है कि उन्हें इन बाहरी आंखों से देखा नहीं जा सकता है। उनकी सारी रचना तो इधर है लेकिन वे शब्द रूप में हैं। शब्द का अर्थ है आवाज (आकाशवाणी, देववाणी, अनहद नाद)।
सतगुरु इस धरती के मेहमान होते हैं।
सन्तमत की एक प्रार्थना में बोलते हैं – “भाग्य मेरे जागे सतगुरु आए पाहुना।” पाहुना का अर्थ होता है मेहमान। मेहमान वह होता है जो कुछ समय के लिए आता है, ठहरता है और फिर चला जाता है। आमतौर पर, किसी रिश्तेदार या परिचित को मेहमान कहते हैं। चाहे वह मित्र हो या शादी-ब्याह के माध्यम से बना कोई सम्बंधी, जैसे मामा, फूफा आदि। इसी प्रकार सतगुरु भी इस धरती पर मेहमान के रूप में आते हैं और अपना काम करके चले जाते हैं।
सतगुरु इस धरती पर क्यों आते हैं ?
सन्तों ने कहा कि –
हम आए वही देश से, जहाँ तुम्हारो धाम।
तुमको घर पहुंचावना, एक हमारो काम।।
सन्तों का एक ही लक्ष्य और उद्देश्य होता है कि हम सबको हमारे घर पहुंचा दें। जैसे कोई किराए के मकान में रहे तो वह उसका घर तो हो नहीं जाएगा, एक न एक दिन खाली करना ही पड़ेगा। जब एक दिन खाली करना ही पड़ेगा तो उसे यह चिंता-फिक्र रहेगी कि मकान मालिक जब हमें नोटिस दे देगा – “खाली कर दो एक महीने के अंदर”, तब हम कहां जाएंगे ?
ऐसे ही आपको चिंता-फिक्र होनी चाहिए कि हमारा मनुष्य शरीर किराए का मकान है। इसके छूटने के बाद हम कहां जाएंगे? इसके बाद हमारी जीवात्मा कहां जाएगी? तो सन्त कहते हैं – “हम तुमको तुम्हारे घर पहुंचा देंगे और तुम्हारे घर से तुमको कोई खाली नहीं करा पाएगा।” जैसे अपने घर में कोई पहुंच जाए तो उसे खाली करने का कोई डर, चिंता या फिक्र नहीं रहती। ऐसे ही जीवात्मा जब अपने घर पहुंच जाएगी, प्रभु के पास पहुंच जाएगी, तो उसे वहां से कोई निकाल नहीं सकता है।