छत्तीसगढ़

CG High Court ब्रेकिंग : TI सहित तीन पुलिस कर्मियों को 10 साल की सजा, कोर्ट ने इस वजह से सुनाई कठोर सजा…..

बिलासपुर। हिरासत में मौत के मामले में ट्रायल कोर्ट ने टीआई और तीन पुलिस कर्मियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। अपील की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने ट्रायल कोर्ट के आजीवन कारावास की सजा को 10 वर्ष में बदल दिया है। सजा में बदलाव करने के साथ ही हाई कोर्ट ने ऐसे कृत्य पर गंभीर टिप्पणी की है। अपनी टिप्पणी में हाईकोर्ट ने कहा है कि हिरासत में मौत ना सिर्फ कानून का उल्लंघन है बल्कि यह लोकतंत्र और मानवाधिकारों के खिलाफ गहरी चोट है। जब रक्षक की भक्षक बन जाए तो यह समाज के लिए गंभीर खतरा पैदा हो जाता है। हत्या का इरादा नहीं होने पर इसे आजीवन कारावास की सजा को हत्या में बदल आजीवन कारावास की सजा को 10 वर्ष कर दिया गया है।

मामला वर्ष 2016 का है। जांजगीर जिले के मुलमुला थाने में वर्ष 2016 में ग्राम नरियरा निवासी सतीश नोरगे को हिरासत में लिया गया था। उसे पर शराब पीकर हंगामा करने का आरोप था। पुलिस ने देर रात हिरासत लिया था। सुबह तक उसकी मौत हो गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में शरीर पर 26 चोटों के निशान पाए गए थे। यह मामला उस वक्त काफी सुर्खियों में रहा था। ग्रामीणों ने थाने का घेराव भी किया था। इसके बाद थाना प्रभारी जितेंद्र सिंह राजपूत, आरक्षक दिलहरण ,सुनील ध्रुव और नगर सैनिक राजेश कुमार के खिलाफ हत्या और एक्ट्रोसिटी का अपराध दर्ज हुआ था। चालान प्रस्तुत होने के बाद ट्रायल कोर्ट ने वर्ष 2019 में टीआई और आरक्षकों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ टीआई व आरक्षकों ने हाई कोर्ट में अपील पेश की थी। मृतक युवक की पत्नी ने हाई कोर्ट में अपनी आपत्ति दर्ज करवाई थी। मामले की सुनवाई जस्टिस संजय अग्रवाल और जस्टिस दीपक कुमार तिवारी की डिवीजन बेंच में हुई। मामले की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि हिरासत में मौत न सिर्फ कानून का उल्लंघन है बल्कि यह लोकतंत्र और मानवाधिकारों के खिलाफ गहरी चोट है। जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तो यह समाज के लिए गंभीर खतरा पैदा हो जाता है। हालांकि अदालत ने इसे गैरइरादतन हत्या का मामला माना।

अदालत ने अपने फैसले में लिखा है कि हत्या की मंशा स्पष्ट नहीं थी, लेकिन आरोपी जानते थे कि पीटने से गंभीर परिणाम हो सकते हैं, इस वजह से हाई कोर्ट ने आईपीसी की धारा 304 भाग एक के तहत गैर इरादतन हत्या मान सजा को उम्र कैद से घटाकर 10 साल का कठोर कारावास कर दिया। एक्ट्रोसिटी मामले में अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में असफल रहा है कि पुलिसकर्मी जानते थे कि मृतक अनुसूचित जाति का है। इसलिए सभी पुलिस कर्मियों को एक्ट्रोसिटी एक्ट से बरी कर दिया।

एफआईआर के बाद से सभी पुलिसकर्मी जेल में ही है। ट्रायल कोर्ट के फैसले के बाद सजा काट रहे हैं। अब बाकी सजा पूरी करवाने के लिए बिलासपुर सेंट्रल जेल के अधीक्षक को आदेश की कॉपी भेजने का निर्देश डिवीजन बेंच ने दिया है।

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