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सतसंग से अहंकार खत्म हो जाता है, बुद्धि सही होती है, विवेक जगता है और चित्त का चिंतन सही हो जाता है – बाबा उमाकान्त महाराज

सतसंग से अहंकार खत्म हो जाता है, बुद्धि सही होती है, विवेक जगता है और चित्त का चिंतन सही हो जाता है – बाबा उमाकान्त महाराज

सतसंग सुनने से सच्चाई की जानकारी होती है, आदमी सच्चा-अच्छा और अहिंसावादी हो जाता है

मुंबई। बाबा उमाकान्त महाराज ने 24 जुलाई 2025 के सतसंग में कहा कि सन्तमत के सतसंग को बराबर सुनना चाहिए। सतसंग से बुद्धि सही होती है, विवेक जगता है और चित्त का चिंतन सही हो जाता है। मन अगर कोई काम करने के लिए कहता है, तब चित्त से चिंतन करते हो कि कैसे किया जाए और फिर योजना बनाते हो। तो सतसंग सुनने से चित्त सही हो जाता है, चिंतन सही होने लगता है। जिससे जान-माल का खतरा पैदा हो जाए, जिससे समाज, देश, परिवार नष्ट हो जाए, ऐसा गलत चिंतन नहीं होता है। चित्त से ही मानवता आती है, चित्त से ही सदाचार, त्याग, सेवा की भावना जगती है। तो जब बुद्धि सही हो जाती है तब चित्त सही चिंतन करता है।

सतसंग सुनने से सच्चाई की जानकारी होती है, आदमी सच्चा-अच्छा हो जाता है, आदमी अहिंसावादी हो जाता है। जब मालूम हो जाता है जीवों पर दया करो, सबके अंदर उस प्रभु की अंश जीवात्मा है और सबको प्रभु ने बनाया है और सबके फायदे, ज्यादातर आदमी के फायदे के लिए बनाया है तो सब पर दया करो, दया रूपी धर्म को अपनाओ। तब आदमी को अहंकार नहीं होता है और आदमी के समझ में आ जाता है।

सब कुछ किया कराया थोड़ी देर के अहंकार में खत्म हो जाता है

सतसंग सुनने से अहंकार खत्म हो जाता है। सब कुछ किया कराया थोड़ी देर के अहंकार में खत्म हो जाता है; चाहे पद का, चाहे धन का, चाहे बल का अहंकार हो। कहा गया

“करा कराया सब गया, जब आया अहंकार” अहंकार से पद चला जाता है, धन चला जाता है और शरीर का बल भी चला जाता है। अहंकार बहुत बुरी बला है, अहंकार नहीं करना चाहिए। अहंकार बहुत जल्दी आ जाता है। अहंकार में तो देवता भी फंस गए “सुर, नर, मुनि सब की यह रीति। स्वार्थ पाय करही सब प्रीति।।”

स्वार्थ में आ कर के वे भी फंस गए। क्यों? क्योंकि जिसके अंदर भी प्रभुता (धन, बल, पद) आ गई उसमें अहंकार आ जाता है। कहा

“कोऊ अस जनमा है जग माहीं, प्रभुता पाई काहि मद नाहीं।”
कौन जन्म लिया है दुनिया-संसार में जिसको (प्रभुता पाकर) अहंकार न आया हो?

अहंकार किसको नहीं आता है ?

“जो समझे प्रभुता परछाई, प्रभुता पाई ताहि मद नाहींं।”
जो प्रभुता को परछाई की तरह से समझता है उसको अहंकार नहीं आता है। धन परछाई की तरह से होता है; आज है, कल नहीं है। क्योंकि परछाई किसी के भी काम आने वाली नहीं है। आजकल लोग धन के पीछे बहुत दौड़ रहे हैं और इसके पीछे अपराध तक कर बैठते हैं। लेकिन धन एक माया है और यह परछाई की तरह से एक छाया है

“माया छाया एक सी, बिरला जाने कोय।
भगता के पीछे फिरे, सम्मुख भागे सोय॥”

तो माया के पीछे कितना भी दौड़ोगे, रखने-कमाने की कोशिश करोगे यह दूर हटती चली जाएगी, फंसते चले जाओगे और अगर इसको परछाई समझ लोगे तो फंसोगे नहीं।

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