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जो मनुष्य शरीर पाकर भी जीवात्मा का कल्याण नहीं करता है, वह बाद में पछताता है – बाबा उमाकान्त महाराज

जो मनुष्य शरीर पाकर भी जीवात्मा का कल्याण नहीं करता है, वह बाद में पछताता है – बाबा उमाकान्त महाराज

मौत के समय जब कर्मों का पर्दा हटता है तब जीव माफी मांगता है लेकिन तब तक माफी का वक्त खत्म हो जाता है

नवी मुंबई। बाबा उमाकान्त महाराज ने 22 जुलाई 2025 के सतसंग में कहा कि तीसरी आंख के सामने बहुत मोटे पर्दे लगे हुए हैं। किस चीज के पर्दे? यही जो चोरी की, लूटा-खसोटा, धोखा दिया, मारा-काटा, माँस-मछली खाई, अंडा खाए, शराब, ताड़ी, अफीम का सेवन किया और नशे में आ कर के व्यभिचार किया; यही सारा गलत काम करने लग गए तो इसी का पर्दा लगा रहता है, और कई जन्मों का पर्दा लगा रहता है। कर्मों का पर्दा तीन तरह से हटता है।

एक तो जब मौत आ जाती है, सामने खड़ी हो जाती है तब पर्दा हट जाता है, उस वक्त पर तो ज्ञान होने लगता है, जानकारी होने लगती है और जीव रोता-चिल्लाता है, माफी मांगता है लेकिन माफी का वक्त खत्म हो गया होता है। कर्मों का पर्दा जब बच्चा माँ के पेट में रहता है तब भी नहीं रहता है, तब भी पिछले जन्मों का असर दिखाई पड़ता है, पिछले जन्मों की याद आती है और एक साधना में पर्दा हटता है।

साधना शिविर जब लगी थी तब आपको बताया गया था कि कुछ लोगों का पर्दा हटा और कुछ लोगों की अंदर की आँख के सामने जो मोटा पर्दा था, उसमें कमी आई।

बुढ़ापे में भजन भाव-भक्ति नहीं हो पाती है।

कहा गया है – “यह तन कर फल विषय न भाई” विषय वासनाओं के लिए यह मनुष्य शरीर नहीं मिला है, यह साधना करने के लिए मिला है। यह साधना का घर है, पूजा का मंदिर है।

“साधन धाम मोक्ष कर द्वारा।
पाई न जेहिं परलोक सँवारा॥ ”

“सो परत्र दु:ख पावइ, सिर धुनि धुनि पछिताइ।
कालहि कर्महि ईस्वरहि मिथ्या दोष लगाइ।।”

जो मनुष्य शरीर पा करके परलोक में आना-जाना शुरू नहीं करता है, वह बाद में पछताता है। क्यों पछताता है? इसलिए कि उम्र आपको गिन कर के दी गई है। मान लो 50 साल, 60 साल की उम्र हो गई और यह जो दिन और रात आते हैं, यह उम्र को काट करके खत्म कर दे रहें हैं। अब मान लो बुढ़ापा आ गया, तो बुढ़ापे में कुछ हो पाता है ? कुछ नहीं हो पाता है। तमाम बुजुर्ग आपके घर में होंगे लेकिन बेचारे यहां सतसंग में नहीं आ पाए। तो जो कुछ भी होता है, जब शरीर में ताकत रहती है तभी हो पाता है।
इसीलिए बुजुर्ग लोग पछताते हैं बेचारे कि देखो अब हम क्या करें ? अब हम भजन भाव-भक्ति नहीं कर सकते, नाम का सुमिरन नहीं कर सकते, साधना शिविर में जा नहीं सकते हैं, साधना कर नहीं सकते हैं लेकिन “अब पछताए होत क्या” अब पछताने से क्या फायदा ? समय निकल गया।

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