मध्यप्रदेश

भारत देश के विद्वानों में यह कमी रही है कि अपनी विद्या को बांट करके नहीं गए – सन्त उमाकान्त महाराज

भारत देश के विद्वानों में यह कमी रही है कि अपनी विद्या को बांट करके नहीं गए – सन्त उमाकान्त महाराज

उज्जैन (म.प्र)। बाबा जयगुरुदेव आश्रम, उज्जैन पर चल रहे तीन दिवसीय आध्यात्मिक होली पर्व के दूसरे दिन भक्तों को सतसंग सुनाते हुए परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया कि कला और विद्या को दूसरों को बताना और सिखाना चाहिए। भारत देश के विद्वानों में, भारत देश के लोगों में यह सबसे बड़ी कमी रही है कि वे अपने ज्ञान को, अपनी विद्या को, अपने शरीर के साथ ही लेकर चले गए। वह बता सकते थे, सिखा सकते थे, लेकिन ऐसा किया नहीं। ज्ञान को बांट करके जाना चाहिए, ज्ञान को रखना नहीं चाहिए। यह विद्या है, जितना बांटोगे उतनी ही यह बढ़ेगी।

सन्तों का दर्जा सबसे ऊपर होता है।

इस संसार में जो भी चीजें हमें दिखाई देती हैं जैसे पेड़, जानवर, मनुष्य, एक दिन समाप्त हो जाएंगी। इसी प्रकार, यह मनुष्य शरीर भी नश्वर है और एक दिन छूट जाएगा। जो इस सत्य को समझ लेता है, वह मुनि कहलाता है। जब किसी व्यक्ति की दिव्य दृष्टि खुल जाती है तो वह अदृश्य लोकों (जो बाहरी आंखों से नहीं देखा जा सकता) को भी देखने में सक्षम हो जाता है। जिनका ब्रह्मा, विष्णु और महेश के लोकों में आना-जाना शुरू हो जाता है, वे देवर्षि कहलाते हैं। जैसे नारद मृत्युलोक का संदेश देवताओं तक पहुँचाते थे और वहां का संदेश मृत्युलोक तक। जो और आगे बढ़ जाते हैं, वे योगी कहलाते हैं। उसके आगे योगेश्वर, साध, सन्त और परम सन्त। सन्तों का दर्जा सबसे ऊपर होता है। सन्त रहते तो इसी मनुष्य शरीर में हैं लेकिन ऊपर के लोकों की पूरी जानकारी रखते हैं और सभी लोकों में उनकी पहुँच होती है। सन्तों का मत सबसे ऊँचा इसलिए है क्योंकि वे जीव को माया, काल, और इस नाशवान संसार के जाल से निकालकर परम धाम तक ले जाते हैं।

पहले केवल ध्यान करके लोग पार हो जाते थे।

सबसे पहले सतयुग था। तब लोग केवल ध्यान लगाते थे और ध्यान के द्वारा ही निजघर चले जाते थे। ध्यान में ही अंदर की आवाज भी मिल जाती थी क्योंकि अंदर का कान बंद नहीं था। जब युग बदला तो लोग आंखों के नीचे की साधना करने लगे। जब चक्रों का भेदन किए, तो जो ऊपर के लोक के देवी-देवता हैं, उनकी परछाई को देखा और उन्हीं के पुजारी हो गए। उन देवताओं की ताकत उनके अंदर आ गई तो वे सोच लिए कि यही देवता ही सब कुछ हैं। इसीलिए भारत देश में बहुत से मत-मतांतर बन गए, मतों में अंतर हो गया लेकिन सतयुग में यह सब कुछ नहीं था। चक्रों के भेदन जैसी कठिन साधना में लोगों की दस-दस हजार सालों की उम्र खत्म हो गई। इसीलिए जब कलयुग में सन्त आए तो उन्होंने आँखों के नीचे की सारी साधना को खत्म कर दिया और जो रास्ता आँखों के बीच से गया हुआ है, उसको बताना शुरू किया।

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