ऊपरी लोकों में बदबू है ही नहीं, वहाँ की रचना ही अलग है – बाबा उमाकान्त महाराज

ऊपरी लोकों में बदबू है ही नहीं, वहाँ की रचना ही अलग है – बाबा उमाकान्त महाराज
जीवात्मा वाले नाक से खुशबु ले कर के साधक मस्त हो जाता है
माउली लॉन्स, मालवाड़ी, तलेगांव दाभाड़े, पुणे। बाबा उमाकान्त महाराज ने 20 जुलाई, 2025 के सतसंग में कहा कि नाक ही इस शरीर को चलाता है। इसमें दो सुराख होते हैं; एक बाई तरफ, दूसरा दाई तरफ। यह दोनों ही अपना काम 24 घंटे करते रहते हैं। अब जिस तरह ए.सी. में दो पंखे होते हैं; एक तो अच्छी हवा को बाहर से ले कर के कमरे में देता है और फिर उसको ठंडा करता है और दूसरा पंखा अंदर की गर्मी को बाहर निकालता है। इसी तरह एक नाक के सुराख से एक बार में अच्छी हवा जाती है और उसी समय दूसरे नाक के सुराख से गर्म हवा निकलती है, गंदी हवा निकलती है। अब एक नाक, एक बार में, एक ही काम करेगा; तो कभी बाएं नाक से गर्म हवा निकलेगी, कभी दाहिने से निकलेगी। एक समय ऐसा भी आता है जब गर्म हवा दोनों से निकलती है, इस समय पर बदलाव (स्विच) होता है; जैसे अगर गर्म हवा को दाई तरफ से निकलना है और यह बाई तरफ से निकल रही है तो उतने समय के लिए यह दोनों नाक ही हवा को खींचते भी हैं और छोड़ते भी हैं। अगर कोई स्वस्थ आदमी है तो यह बदलाव करने में ज्यादा समय नहीं लेते हैं, ज्यादा से ज्यादा 8-10 मिनट में यह बदलाव कर देते हैं। नाक के यह दोनों सुराख कभी अपना काम बंद नहीं करते हैं; चाहे नहाओ, खाओ, सोओ, चाहे कहीं भी जाओ, यह अपना काम करते रहते हैं।
अंदर वाले नाक से खुशबु ले कर के साधक मस्त हो जाता है
बाहर में दो नाक हैं और एक नाक अंदर जीवात्मा में भी है। बाहर के नाक से बाहर की खुशबु और बदबू मिलती है लेकिन अंदर की नाक से केवल खुशबू मिलती है, सुगंधी ही मिलती है। क्यों? क्योंकि वहाँ ऊपरी लोकों में बदबू है ही नहीं। ऊपरी लोकों का भोजन ही अलग है, वहाँ का रहन-सहन अलग है। यहां की चीजें वहां है ही नहीं और जा भी नहीं सकती हैं। कोई कितना भी कहे कि यह चीज हमारी है लेकिन मरते समय कोई कुछ ले कर के गया? नहीं। वहाँ की रचना ही अलग है, वहाँ घर-मकान, सीन-सीनरी सब हैं लेकिन वे अलग ही हैं। अंदर वाले नाक से खुशबु ले कर के साधक मस्त हो जाता है और यह नाक सूरत-शब्द योग साधना से खुलेगा।