आज संकल्प बनाना चाहिए कि सतगुरु से रास्ता लेकर अंतर में राम के वास्तविक रूप का दर्शन करेंगे – बाबा उमाकान्त महाराज

आज संकल्प बनाना चाहिए कि सतगुरु से रास्ता लेकर अंतर में राम के वास्तविक रूप का दर्शन करेंगे – बाबा उमाकान्त महाराज
भगवान राम के आदर्शों को आने वाली पीढ़ी को बताने, सिखाने की जरूरत है
उज्जैन। परम सन्त बाबा उमाकान्त महाराज ने रामनवमी के दिन सतसंग सुनाते हुए भगवान राम के बारे में बताया कि भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम राम कहा गया; आज उनका जन्मदिन है। भगवान राम महापुरुष थे, लोगों के दुख को दूर करने के लिए भेजे गए थे। यह भारत भूमि ऐसी है कि यहां समय-समय पर महापुरुषों का पदार्पण होता रहता है। जब लोग दुखी होते हैं परेशान होते हैं और उस मालिक से सच्चे हृदय से प्रार्थना करते हैं तब वह दयानिधि, दीनबंधु, गरीब परवर जिसको कहा गया; वह किसी न किसी को भेजता है। त्रेता युग में इनका (राम का) पदार्पण (अवतार) हुआ था। उस समय पर रावण व राक्षसों का बड़ा प्रकोप था। ऋषि-मुनियों को यज्ञ नहीं करने देते थे, धर्म नाम की चीज को ही खत्म कर देना चाहते थे। तब दुखी हो कर के लोगों ने प्रार्थना किया और तब मालिक ने इनको भेजा।
भगवान राम ने बहुत बड़ा त्याग किया और हर मर्यादा का पालन किया
राम के विद्या गुरु विश्वामित्र थे और आध्यात्मिक गुरु वशिष्ठ थे। विश्वामित्र उनको मांग करके यज्ञ की रक्षा के लिए ले गए थे, साढ़े बारह वर्ष तक अपने पास रखा। वहीं सारे ज्ञान से इनको परिपूर्ण कर दिया। वापस जब अयोध्या आए तो पिता के वचनों का मान रखते हुए उनके आदेश का पालन करते हुए चौदह वर्ष तक जंगल चले गए। आप सोचो कि कितना बड़ा त्याग किया उन्होंने और कितनी मर्यादा का पालन किया कि पिता के आदेश पर राजगद्दी पर ठोकर मार दिया। जंगल में जाने से पहले उनको मालूम था कि यह सब रावण के विनाश करने का कारण बन रहा है तब उन्होंने आवाज लगाई कि अयोध्या वासियों मेरा साथ दे दो, मैं धर्म की स्थापना के लिए जा रहा हूँ। लेकिन कोई भी ज्योतिषी, विद्वान, पढ़े-लिखे जो उस समय पर थे इनका साथ नहीं दिए। लेकिन उनको काम करना था तो बंदर और भालुओं को इकट्ठा किया और गुरु की शरण में रह कर के जो भी ज्ञान एवं सिद्धियाँ प्राप्त की थी वह सब उनमें (बंदर और भालुओं में) भर कर उनके द्वारा रावण का, राक्षसों का विनाश कर धर्म की स्थापना की।
जब रावण का संहार करने के बाद राम अयोध्या पहुँचे तो माता कौशल्या को यह शंका थी कि यह कोमल, साधारण सा दिखने वाला मेरा बेटा रावण जैसे बलवान पराक्रमी का वध कैसे कर पाया “अति सुकुमार जुगल मम बारे, कवन भॉंति लंकापति मारे”। तब राम ने उत्तर दिया मॉं मेरे अंदर जो शक्ति गुरु वशिष्ठ जी की कृपा से प्राप्त हुई थी उससे मैं रावण का वध कर पाया “गुरु वशिष्ठ कुल पूज्य हमारे, तिनकी कृपा दनुज रण मारे”।
महात्मा धार्मिक ग्रंथों को इसीलिए छोड़ करके गए कि लोग उनमें लिखी बातों का अनुकरण करेंगे
गोस्वामी महाराज ने सबसे पहले घट रामायण लिखा था, फिर रामचरितमानस लिखा। राम का चरित्र जो मानस में (इसी मनुष्य शरीर में) हो रहा है। वह ग्रन्थ इसीलिए छोड़कर गए कि इनका अनुकरण लोग करें, उनको याद करें और उन्होंने जैसा किया, वह महापुरुष किस तरह से बने, उन्होंने धर्म की स्थापना किस तरह से की, किस तरह से त्याग किया, रावण जैसे पराक्रमी को परास्त किया। इन ग्रंथों से यह समझने की जरूरत है और आने वाली पीढ़ी को समझाने की जरूरत है। उनके आदर्श को लोगों को बताने की जरूरत है, बच्चों को सिखाने की जरूरत है। आज के दिन आपको अपना असली काम करने का संकल्प बनाना चाहिए। राम जिस शक्ति को लेकर इस धरती पर आए थे उस शक्ति के पास पहुँच कर वास्तव में जो राम का रूप है उसका अंतर में दर्शन हम करेंगे, जो हमारी आत्मा यहाँ (मृत्यु लोक में) उतारी गई है यह उस परमात्मा में जाकर विलीन हो जाए और इसे मुक्ति मिल जाए। जब सतगुरू से रास्ता मिल जाता है तब यह जीवात्मा अंधकार से प्रकाश की ओर चली जाती है, ऑंख बंद करने पर अंदर में उजाला हो जाता है। तब जीवात्मा को सारे देवी-देवता, उनके पुत्र जो ऋषि-मुनि के रूप में आए सब दिखाई पड़ते हैं। वहाँ भी यह साधना में लीन रहते हैं। अंतर में दर्शन सबका होता है इसलिए आप इसमें लगो जिससे अपना काम बने और फिर इस दुख के संसार (मृत्युलोक) में ना आना पड़े।