जब जीवात्मा इस अंधकार से प्रकाश में जाती है, तब अपना असली रूप दिखाई पड़ता है – बाबा उमाकान्त महाराज

जब जीवात्मा इस अंधकार से प्रकाश में जाती है, तब अपना असली रूप दिखाई पड़ता है – बाबा उमाकान्त महाराज
जिस लोक में जीवात्मा पहुंचती है, वहां की शक्ति उसके अंदर आ जाती है
जोधपुर, राजस्थान। बाबा उमाकान्त महाराज ने 2 सितंबर 2025 के सतसंग में कहा कि जब यह जीवात्मा इस अंधकार से प्रकाश में जाएगी तब आत्म साक्षात्कार होगा, तब अपना रूप दिखाई पड़ जाएगा। जैसे ही पिंडी शरीर छूटेगा, अंड लोक में यह प्रवेश करेगी उसी समय ये जो कर्म हैं, ये जल जाएंगे, बुरे कर्म उसी समय सब खत्म हो जाएंगे। और जब बुरे कर्म हट जाएंगे, तब रोशनी सीधी आत्मा को मिलेगी और तब आत्मा की पहचान हो जाएगी।
आपको अपनी पहचान अंधेरे में नहीं हो सकती है कि मेरा हाथ कैसा है, मेरा पैर कैसा है, मेरी आँख कैसी है, लेकिन अगर आप रोशनी में खड़े हो जाओगे और देखोगे, तो पहचान हो जाएगी कि भाई यहां देखो कालीख लगी है, यहां मिट्ठी लगी है, यहां हमारा कपड़ा गंदा है; यह सब दिखाई पड़ जाएगा। ऐसे ही प्रकाश में पहुंचते ही अपनी पहचान हो जाती है, फिर उसके बाद एक से एक लोकों में जाना हो जाता है।
जब शक्ति आ जाती है, तब जीव को यह ज्ञान हो जाता है कि हम ही सब कुछ हैं
जीवात्मा का जब ऊपरी लोकों में जाना हो जाता है तो वहीं पर ताकत शुरू हो जाती है। गणेश लोक में पहुंचने के बाद, शिवलोक में पहुंचने के बाद, विष्णु लोक में पहुंचने के बाद, आद्या के लोक में पहुंचने के बाद जो शक्तियां उनके अंदर हैं, वही अपने अंदर आ जाती हैं। जीव को तब यह ज्ञान हो जाता है कि हम ही सब कुछ हैं, हमारे लिए सब कुछ है और हम जो चाहें वह कर सकते हैं। फिर जब जीवात्मा और आगे बढ़ जाती है तो सारी इच्छाएं खत्म हो जाती हैं, फिर किसी चीज की कोई इच्छा नहीं रहती है।
लेकिन जिस चीज की इच्छा हम लोग करते हैं; चाहे वह धन हो, चाहे सम्मान हो और चाहे दुनिया की जो भी चीजें हों, यह अपने आप आने लग जाती हैं। जैसे किसी के सामने थाली में बहुत सारी चीजें रख दी जाएं; नमकीन रख दी जाए, पूरी–रोटी रख दी जाए, कई तरह की दाल, कई तरह की सब्जी, कई तरह की मिठाई रख दी जाए कि जो आपकी इच्छा हो आप खा लो, लेकिन इच्छा ही खत्म हो जाती है। अगर भूख खत्म ही हो गई आदमी की, भूख ही नहीं है, तो कितना भी थाली को सजा करके आप उसके सामने रख दो, वह कुछ नहीं खाएगा। कहेगा “भैया हम नहीं खाएंगे, भूख नहीं है”; इच्छा ही खत्म हो जाती है। तो इच्छा या तो पूरी हो जाती है या तो खत्म हो जाती है। इच्छा पूरी करने की भी इच्छा खत्म हो जाती है।
आत्म कल्याण के लिए बराबर सुमिरन-ध्यान-भजन (साधना) करते रहो
कहते हैं– “जिसको कछु नहीं चाहिए, सोई शहंशाह” वही बादशाह हो जाता है, वही राजा हो जाता है, वही अलग हो जाता है।
बादशाह किसको कहते हैं? जो जनता (प्रजा) से अलग रहता है, जिसका पहनावा जनता से अलग होता है, जिसका रहन-सहन, विचार-भावनाएं जनता से अलग होती हैं, वही राजा होता है। तो आप सबसे अलग हो जाओगे।
सब चीजें; ये जितनी गंदगी है, जितनी ख्वाहिश है, धीरे-धीरे सब खत्म होती चली जाएगी, जीवन सार्थक हो जाएगा, अपना काम (आत्म कल्याण) बन जाएगा। तो आप लोग बराबर सुमिरन-ध्यान-भजन (साधना) करते रहो।