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CG – तिरुपति मंदिर में वास्तु के अनुपम प्रयोगो को जानते है वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा से की पांच तत्वों को कैसे बैलेंस किया गया है…

तिरुपति मंदिर में वास्तु के अनुपम प्रयोगो को जानते है वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा से की पांच तत्वों को कैसे बैलेंस किया गया है

डॉ सुमित्रा अग्रवाल
सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री
कोलकाता
यूट्यूब वास्तुसुमित्रा

कोलकाता। तिरुपति बालाजी मंदिर (तिरुमाला वेंकटेश्वर मंदिर), आंध्र प्रदेश के तिरुमाला पर्वत पर स्थित, न केवल अद्भुत भक्ति का केंद्र है, बाल्की वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों पर भी आधारित है। यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार श्री वेंकटेश्वर जी का है।

वास्तु – विश्लेषण करते हैं :

1. दिशाओं का शुद्ध उपयोग तिरुपति मंदिर का मुख्य प्रवेश और गर्भगृह का अभिविन्यास पूर्व की और है – यह वास्तु में अत्यंत शुभ मान जाता है।

भगवान वेंकटेश्वर का मुख भी पूर्व की और है – जहाँ से प्रभात काल का सूर्य प्रकाश उन पर पड़ता है, जो अग्नि तत्व और दिव्य ऊर्जा का प्रतीक है।

2. गर्भगृह का स्थान और ब्रह्मस्थान गर्भगृह मंदिर के ब्रह्मस्थान के पास स्थित है।

ब्रह्मस्थान में कोई स्तंभ नहीं है – यह वास्तु के मूल नियम के अनुकूल है।

शिखर भी गर्भगृह के ऊपर स्थित, जो ब्रह्म-शक्ति का प्रतीक है।

3. जल और वायु तत्व का संतुलन तिरुमाला में है। पुष्करिणी प्राकृतिक जल तत्व है। मंदिर परिसर में प्राकृतिक वायु, प्रकाश और खुली जगह भी वास्तु के अनुसार है।

4. वास्तु पुरुष मंडल का पूर्ण पालन मंदिर का लेआउट वास्तु पुरुष मंडल के ६४ या ८१ पदों पर आधार है – जिस पर प्राचीन स्थापना शास्त्र भी काम करता है। मंडपम, बाहरी गलियारा, द्वाजस्तम्भ, बाली पीठम – सभी की स्थिति वस्तु के अनुकूल संचलित है।

5. मंदिर का स्थान – तिरुमाला ७ पहाड़ों पर स्थित है – जिन्हे वास्तु में सप्त ऋषि शक्तियों का प्रतीक माना गया है। मंदिर का स्थान – शेषाद्री पर्वत – वास्तु में स्थित, धैर्य और मोक्ष का प्रतीक है।

6. शनि और राहु दोष से रक्षा तिरुपति बालाजी के चरणों में शनि राहित चक्र और शंख (शंख) स्थितित हैं – जो वास्तु और ज्योतिष दोनों के रूप से शनि, राहु, केतु के दोष को हटाते है।

वास्तु के नियमो को प्रसिद्ध निर्माणों में ढूंढने से ये बात सामने निकल कर आती है की शास्त्रोक्त निर्माण ही सफलता की उचाईयो पर है इसमें कोई शक या शंका नहीं है।

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