नवरात्र में संयम-नियम के पालन से रजोगुण, तमोगुण और सतोगुण को खत्म किया जा सकता है – बाबा उमाकान्त महाराज

नवरात्र में संयम-नियम के पालन से रजोगुण, तमोगुण और सतोगुण को खत्म किया जा सकता है – बाबा उमाकान्त महाराज
पाप और पुण्य दोनों ही जीवात्मा की मुक्ति में बाधक होते हैं
उज्जैन। उज्जैन परम सन्त बाबा उमाकान्त महाराज ने बताया कि धार्मिक किताबों में संयम-नियम के बारे में बताया गया है। जो आवाज़ ऊपर से उतरी उसके वेद बन गए। वेदों की बातों से ही भगवान कृष्ण ने भागवत गीता का निर्माण किया, मूल वेद ही है। लोग पढ़-समझ नहीं पाते इसलिए प्रकृति के नियम के खिलाफ काम करने लगते हैं तब उनको सजा मिल जाती है। जैसे सूर्य के तेज प्रकाश में जब लोग नंगे पैर चलते हैं तो फफोले पड़ जाते हैं, नंगे सिर चलते है तो गर्मी बैठ जाती है जिससे सिरदर्द होने लगता है इसी प्रकार ना समझ पाने के कारण पाप बन जाते है और लोग दु:ख झेलने लगते हैं। इसीलिए संयम नियम का पालन करना चाहिए।
पाप – पुण्य की बेड़ी में इंसान कैसे फंसता है ?
मन के फुरना पैदा करने पर व्यक्ति उसके अनुसार काम कर बैठता है। जैसे कोई कीमती वस्तु देखने पर मन उसे चोरी करने के लिए कहता है और फिर चित्त चिंतन करता है, निर्णय लेता है कि हाँ – हाँ ले लिया जाए क्योंकि मन की डोरी माया के हाथ में और चित्त की डोरी ब्रह्मा के हाथ में होती है। इस समय बुद्धि की डोरी विष्णु खींचते हैं और व्यक्ति सोचता है कि पता लग जाएगा तो सजा भोगनी पड़ेगी। तब माया (मन) सोचती है कि इसका पाप कर्म कैसे बनेगा? वैसे ही शिव अहंकार की डोरी खींचते हैं और व्यक्ति सोचता है कि उठा लो, रख लो, जो होगा देखा जाएगा। इससे हम लखपति हो जाएंगे और उठा लेने पर पाप बन जाता है।
इसी प्रकार जैसे कोई भूखा दरवाजे पर आया तो मन कहेगा कि इसको रोटी खिला दो। उसी समय चित्त चिंतन करेगा कि इससे पुण्य मिलेगा। बुद्धि भी इसी प्रकार चित्त चिंतन करके हाँ में हाँ मिला देती है और बुद्धि सोचती है कि खिलायें या ना खिलायें। तब शिव अहंकार की डोरी खींच देते हैं और व्यक्ति सोचता है कि खिला दो, इसे खिला दो। ऐसे पुण्य बन जाता है। इस प्रकार पाप पुण्य की बेड़ी में व्यक्ति फंसा रह जाता है। ये दोनों ही जीवात्मा की मुक्ति में बाधक होते हैं।
जब रजोगुण, तमोगुण, सतोगुण तीनों नष्ट हो जाते है तब मन भक्ति में लगता है
नवरात्र में संयम नियम के पालन से रजोगुण, तमोगुण और सतोगुण को नष्ट किया जा सकता है। इनको नष्ट करना ज़रूरी होता है। रजोगुण किसको कहते हैं? जब आदमी का पेट भरा होता है तो उसका मन कहता है आराम करें, शरीर में आलस्य आ जाता है। वाहन चालकों का अनुभव होता है कि आलस आने पर गाड़ी से दुर्घटना की संभावना रहती है। इसीलिए रजोगुणी प्रवृत्ति को नष्ट करना आवश्यक होता है। तमोगुण किसको कहते हैं? थोड़े ही समय में गुस्सा आना, थोड़ी ही बातों पर आदमी उछलने कूदने लगता है, अगर शरीर में ताकत हो तो मारपीट भी कर लेता है। लेकिन भूखा आदमी, ताकत के न रहने पर मारपीट नहीं कर सकता। इसलिए तमोगुण को नष्ट करना पड़ता है। इसी तरह सतोगुणी प्रवृत्ति भी खत्म करने की जरूरत है। इसकी डोर विष्णु के हाथ में होती है। वह दुनिया की लुभावनी चीज देते हैं, जैसे धन, पुत्र-परिवार में बढ़ोतरी इत्यादि लेकिन मरने के बाद यह चीज़ें काम नहीं आती हैं और इसमें ही मनुष्य फँस जाता है। इसीलिए सतोगुण को भी खत्म करना चाहिए। नवरात्र में उपवास से शरीर और मन कमज़ोर पड़ते है तो ऐसे पहले तीन दिनों में रजोगुण (आलस्य) नष्ट होता है, अगले तीन दिनों में तमोगुण और अंतिम तीन दिनों में सतोगुण नष्ट होता है। जब ये तीनों नष्ट हो जाते है तब मन भक्ति में लगता है।