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अपना यह दण्डक अरण्य- लोकार्पित…

अपना यह दण्डक अरण्य- लोकार्पित

सनत कुमार जैन
साहित्य एवं कला समाज

जगदलपुर। शहर की साहित्यिक गतिविधियों का केन्द्र बना बस्तर चेम्बर ऑफ कामर्स भवन शनिवार को पुनः नवीन काव्य संग्रह के विमाचन का गवाह बन गया, जब बस्तर ग्राम के लेखक कवि फणीन्द्र लाल देवांगन का काव्य संग्रह अपना यह दण्डक अरण्य शहर के प्रबुद्ध जनों के करकमलों से लोकार्पित हुआ।

लेखक की लगभग साठ वर्षों की काव्य यात्रा का निचोड़ यह काव्य संग्रह मंचस्थ अतिथियों और समीक्षकों द्वारा काफी सराहा गया।
मचस्थ अतिथिगण वरिष्ठ कलाकार बी एल विश्वकर्मा जी, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ कौशलेन्द्र मिश्र, वनवासी कल्याण आश्रम के प्रांतीय सहसचिव ए एन साही जी और देवांगन समाज के वरिष्ठ सदस्य श्यामलाल देवांगन थे।

काव्य संग्रह की समीक्षा करते हुये चिंतक कवि हिमाशुशेखर झा ने बताया कि काव्य संग्रह बस्तर के पर्यावरण, लोक संस्कृति और जनजीवन पर लिखा हुआ शानदार है। उन्होंने संग्रह की दरभा हाट कविता को पाठ भी किया।

गजलकार अवध किशोर शर्मा ने बताया कि संग्रह की रचनाओं में गेयता है तुकांत कविताएं पढ़ने का सौभाग्य बड़े समय के बाद प्राप्त हुआ है। संग्रह की लगभग सभी कविताएं पठनीय हैं और संग्रह संग्रहणीय है।

स्त्री केन्द्रित कविताओं से अपनी विशिष्ट पहचान बनाने वाली डॉ सुषमा झा ने बताया कि इस संग्रह में किसान, खेत, बस्तर का सौन्दर्य, पर्यावरण की चिंता और बस्तर के गांवों का अद्भुत चित्रण है।

बस्तर एक खोज के लेखक शरदचंद्र गौड़ ने कहा कि कवि ने अपनी कविताओं में समूचे बस्तर को समेटा है। शंकनी डंकनी, इंद्रावती, बैलाडिला, दरभा से लेकर पूरा बस्तर लिया है। खनिज और फसलों के साथ सौन्दर्य लिया है।

कवयित्री सतरूपा मिश्रा ने प्रथम बार समीक्षक के रूप में अपनी भूमिका निभाते हुये बताया कि रचनाओं में गहराई है और बार बार पढ़ने की इच्छा जागृत होती है इसका मतलब कविताएं श्रेष्ठ हैं।
कहानीकार और समाज सेवी सुश्री उर्मिला आचार्य ने अपनी समीक्षा में बताया कि बस्तर के संदर्भ में लिखी इस काव्य संग्रह का स्वागत किया जाना चाहिये, भविष्य में यह एक आवश्यक दस्तावेज के रूप में उपयोगी होगा।

फणीन्द्र लाल देवांगन ने बताया कि वे लगातार रचनारत हैं।

बाल्यकाल में अपने दादाजी के मुख से सुनी कविताओं से लेखन की इच्छा जागृत हुयी, इसके अलावा उनके दादाजी सुकमा में शिक्षक थे तब उनके साथ रहते हुये बस्तर का मनभावन सौन्दर्य देखकर काव्यसृजन की ओर अग्रसर हुआ। काव्यलेखन के माध्यम से आत्मसुख की प्राप्ति होती है, इसलिये लिखता हूं।

डॉ कौशलेन्द्र ने अपने उद्बोधन में कहा कि व्याकरणीय त्रुटियुक्त लेखन पढ़ना ठीक उसी तरह है जिस तरह मखमल के गद्दे पर चलते वक्त पैरों में कंकड़ का आना। हमें इस पर विशेष ध्यान देकर त्रुटिहीन लेखन करना चाहिये।

ए एन साही जी ने कहा कि साहित्यकारों के बीच आकर सुखद अनुभव हुआ और श्रेष्ठ साहित्य के लोकार्पण का साक्षी बनना सुखद रहा।

श्यामलाल देवांगन ने कहा कि किसी कृति में गलती ढूंढना आसान है परन्तु उसकी अच्छाई देखना कठीन कार्य है।

बी एल विश्वकर्मा जी ने कहा कि शहर में निरंतर होती साहित्यिक गतिविधियां शहर को जीवंत बनाती है। हमें इस परम्परा को आगे बढ़ाना चाहिये।

कार्यक्रम की शुरूआत में शैफाली जैन द्वारा सरस्वती वंदना की गयी। कार्यक्रम का संचालन सनत सागर द्वारा बखूबी किया गया। संग्रह का प्रकाशन बस्तर पाति प्रकाशन द्वारा हुआ है।

फणीन्द्र लाल देवांगन जी ने शाल और पुष्पहार के माध्यम से कार्यक्रम में उपस्थित वरिष्ठ साहित्यकार और चिंतक जयचंद्र जैन एवं बस्तर की दानदाता सुश्री अनिता राज का स्वागत किया।

आभार प्रदर्शन फणीन्द्र लाल देवांगन जी के सुपुत्र हिरेन्द्र देवांगन ने किया।

कार्यक्रम में शहर के अनेक साहित्यकारों ने अपनी उपथिति दी। नरेन्द्र पाढ़ी, ऋषि शर्मा ऋषि, विपिन बिहारी दाश, विनय श्रीवास्तव, रजत दीक्षित, सुरेन्द्र कुमार, गीता शुक्ला, नरेन्द्र यादव, नवीन श्रीवास्तव, डालेश्वरी पाण्डे, गोरेलाल विश्वकर्मा, अनिल शुक्ला, कृष्ण शरण पटेल, कृष रामटेके, सुब्रहमण्यम राव, मुकेश मिश्रा, देवेन्द्र देवांगन, शोभा शर्मा, विश्वनाथ शर्मा, आशीष राय, डॉ प्रभाकर मिश्रा, अक्षय जैन आदि और देवांगन परिवार के अनेक सदस्य उपस्थित थे।

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