हर विद्यालय में सक्षम नेतृत्व हमारी प्राथमिकता”—स्कूल शिक्षा मंत्री गजेंद्र यादव….

रायपुर: छत्तीसगढ़ के टी संवर्ग में वर्ष 2013 तथा ई संवर्ग में वर्ष 2016 के बाद पहली बार बड़ी संख्या में प्राचार्यों की पदोन्नति की गई है। लंबे समय से शासकीय हाईस्कूल एवं हायर सेकेंडरी विद्यालयों में प्राचार्य के पद रिक्त होने के कारण शैक्षणिक गुणवत्ता प्रभावित हो रही थी। इस समस्या के समाधान हेतु स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा 30 अपै्रल 2025 को जारी आदेश के अनुसार टी संवर्ग में 12 वर्ष तथा ई संवर्ग में 09 वर्ष की सेवा अवधि पूर्ण करने वाले पात्र शिक्षकों को प्राचार्य पद पर पदोन्नति प्रदान की गई। इस प्रक्रिया के तहत टी संवर्ग में 1335 तथा ई संवर्ग में 1478 व्याख्याताओं/प्रधान पाठकों को प्राचार्य बनाया गया।
2504 पदोन्नत प्राचार्य की पदस्थापना
इन पदोन्नतियों के विरुद्ध दायर याचिकाओं पर माननीय उच्च न्यायालय बिलासपुर द्वारा स्थगन आदेश दिए जाने से पदस्थापना की कार्यवाही रोक दी गई थी। न्यायालय द्वारा याचिकाएँ खारिज किए जाने के बाद शासन द्वारा निर्धारित प्रक्रिया अनुसार पदस्थापना पुनः आरंभ की गई। शासन के पत्र दिनांक 10 अगस्त 2025 के अनुसार काउंसिलिंग के माध्यम से प्राचार्यों की पदस्थापना की गई, जिसमें टी संवर्ग की काउंसिलिंग 20 अगस्त 2025 से 23 अगस्त 2025 तक हुई और कुल 1222 प्राचार्यों का पदस्थापना आदेश जारी किया गया। इसी प्रकार ई संवर्ग की काउंसिलिंग 21 नवंबर से 24 नवंबर 2025 तक आयोजित की गई, जिसके अनुसार 1284 पदोन्नत प्राचार्यों की पदस्थापना आदेश जारी किए जा रहे हैं।
हर विद्यालय में मजबूत नेतृत्व सुनिश्चित करना
स्कूल शिक्षा मंत्री श्री गजेंद्र यादव ने कहा कि लंबे समय से प्राचार्य पद रिक्त होने से स्कूलों की शैक्षणिक व्यवस्था प्रभावित हो रही थी। उन्होंने कहा, “गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए विद्यालयों में सक्षम नेतृत्व आवश्यक है। बड़े पैमाने पर की गई यह पदोन्नति और पदस्थापना राज्य के विद्यालयों में शिक्षा व्यवस्था को और अधिक मजबूत प्रदान करेगी तथा विद्यार्थियों को बेहतर शैक्षणिक वातावरण प्रदान करेगी।” उन्होंने यह भी कहा कि यह कदम स्कूल शिक्षा विभाग के व्यापक सुधार अभियान का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य हर विद्यालय में मजबूत नेतृत्व सुनिश्चित करना है।
प्राचार्यों के रिक्त पदों की पूर्ति होने से विद्यालयों में प्रशासनिक और शैक्षणिक व्यवस्था अधिक सुचारू होगी। इससे शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में सुधार होने के साथ-साथ शिक्षा की गुणवत्ता में भी उल्लेखनीय वृद्धि होने की अपेक्षा है।



