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CG – बस्तर की बेटी ज्योति मांझी : नक्सल छाया से निकलकर संस्कृति की रोशनी तक…

बस्तर की बेटी ज्योति मांझी : नक्सल छाया से निकलकर संस्कृति की रोशनी तक…

नया भारत डेस्क‌। नारायणपुर जिले के एक छोटे से गांव से निकलकर, कला, आत्मबल और संस्कृति की प्रतीक बन चुकी ज्योति मांझी आज बस्तर की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का नाम बन गई हैं।

नक्सल पीड़ित क्षेत्र में जन्मी और संघर्षों के बीच पली-बढ़ी ज्योति, कोई साधारण युवती नहीं हैं — वे देश के प्रतिष्ठित पद्मश्री सम्मान प्राप्त हस्तशिल्प गुरु हेमचंद मांझी की पोती हैं।

अपनी पारिवारिक विरासत में रचे-बसे लोककला और संस्कारों को उन्होंने आधुनिक मंचों पर आत्मविश्वास के साथ प्रस्तुत किया है। इसी सिलसिले में वे अब आगामी 1 अगस्त को यूट्यूब चैनल ‘बस्तरिया स्टार्स’ पर रिलीज़ हो रहे आदिवासी संस्कृति पर आधारित गीत “आमी आदिवासी आँव” में मुख्य भूमिका में नजर आएंगी।

यह गीत न केवल बस्तर की परंपरा, गर्व और सांस्कृतिक अस्मिता को उजागर करता है, बल्कि आदिवासी युवाओं की बदलती सोच और आत्मसम्मान को भी खूबसूरती से दर्शाता है।

गीत के लेखक और गायक डी राज सेठिया तथा गायिका यमुना वट्टी हैं, संगीत तैयार हुआ है मरकाम स्टूडियो फरसगांव में, निर्देशन किया है राकेश ठाकुर ने और नृत्य कोरियोग्राफी आशीष बघेल की है। लोकेश पाणिग्रही और धर्मेन्द्र साहू ने कैमरावर्क व एडिटिंग द्वारा इस गीत को दृश्यात्मक रूप से जीवंत बनाया है।

इस गीत की शूटिंग बस्तर के प्राकृतिक और सांस्कृतिक स्थलों — जैसे चमाई (कोंडागांव), चित्रकूट जलप्रपात, मेंदरी व तारा — पर की गई है, जहां पारंपरिक परिधानों में ज्योति मांझी की भाव-भंगिमाएं, आत्मविश्वास और सांस्कृतिक गर्व दर्शकों का ध्यान आकर्षित करते हैं। उनके नृत्य में केवल सौंदर्य नहीं, बल्कि संघर्ष की एक अनकही कहानी भी झलकती है।

आज की युवा पीढ़ी के लिए ज्योति इस बात का जीता-जागता उदाहरण हैं कि सीमित संसाधनों और कठिन परिस्थितियों के बावजूद, अगर जुनून हो, तो अपनी पहचान बनाई जा सकती है। ‘आमी आदिवासी आँव’ निस्संदेह एक गीत है, लेकिन ज्योति मांझी के लिए यह मंच है — अपने अस्तित्व, अपनी संस्कृति और अपनी आवाज़ को पूरे देश के सामने लाने का।

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