सेवा के साथ अगर भजन किया जाए तो उस सेवा का फल भजन में जुड़ता है – बाबा उमाकान्त महाराज

सेवा के साथ अगर भजन किया जाए तो उस सेवा का फल भजन में जुड़ता है – बाबा उमाकान्त महाराज
जो भी सेवा की जाए वह निस्वार्थ की जाए, उसमें अपना कोई स्वार्थ ना हो
मुंबई। बाबा उमाकान्त महाराज ने 24 जुलाई 2025 के सतसंग में कहा कि सेवा बहुत तरह की होती है। कोई तन की सेवा करता है जैसे किसी को रोटी खिला दी, पानी पिला दिया। धन से सेवा होती है, जैसे किसी गरीब के यहाँ राशन पानी की कमी है तो उसके लिए राशन पानी मुहैया करा दिया, कपड़ा नहीं है तो धन खर्च करके कपड़ा खरीद दिया, बीमार है तो दवाई दे दी; यह सब एक तरह की परमार्थी सेवा है। अब यह जरूर है कि जो भी सेवा की जाए वह निस्वार्थ की जाए, उसमें अपना कोई स्वार्थ ना हो।
अगर यह सोचोगे कि यह गरीब है, मजदूर है और इसके पास नहीं है तो हम इसको खिला दें, इसको कपड़ा दे दें और कल इससे हम काम ले लेंगे और यह अहसान जताएंगे कि हमने तुम्हारी मदद की थी, तो वह बेकार चला जाता है और परमार्थ नहीं कहलाएगा। एक और परमार्थी सेवा होती है; इस जीवात्मा को परमात्मा तक पहुंचाने के लिए जो यह मनुष्य शरीर मिला, उसके लिए नामदान दिलाया जाता है, सतसंग सुनाया जाता है और भजन कराया जाता है। इस सेवा में भी अपना स्वार्थ नहीं रखना चाहिए।
शरीर की सेवा के साथ-साथ इसको चलाने वाली शक्ति ‘जीवात्मा’ की भी सेवा करो
सेवा के द्वारा तो बड़े-बड़ों का दिल जीत लिया जाता है और आज तक अगर किसी को कुछ मिला तो सेवा के द्वारा ही मिला। किसकी सेवा के द्वारा? आराध्य की। आराध्य उनको कहते हैं जिनकी लोग पूजा-पाठ करते हैं, जिनका नाम लेते हैं। अब यह जरूर है कि यह देने वाले पर निर्भर करता है कि वह आपको क्या दे सकता है, जो चीज वह दे सकता है, वही चीज आपको सेवा के द्वारा देगा। जैसे बहुत से लोग मंदिरों में जाकर साफ-सफाई करते हैं, फूल-पत्ति चढ़ाते हैं, भंडारा कर देते हैं, तो जो धन उन्होंने अच्छे काम में लगाया उसका लाभ उनको शरीर के लिए मिल जाता है।
लेकिन तन, मन, धन की सेवा सब यहीं रह जाती है और इसके साथ अगर भजन कर ले जाएं तो यह जो सेवा का फल है, यह भजन में जुड़ता है और भजन में तरक्की होती है, क्योंकि भजन ही सार है, भजन के बगैर मुक्ति-मोक्ष नहीं होता है। तो जैसे आप शरीर की सेवा करते हो ऐसे ही शरीर को चलाने वाली शक्ति ‘जीवात्मा’ की सेवा करो। उसको खुराक पहुंचाओ, उसको सुखी बनाओ।